मस्तिष्क अत्यन्त महत्वपूर्व एवं कोमल अंग होता है। यह खोपड़ी के मस्तिष्क कोष (Cranium ) मे सुरक्षित रहता है। मस्तिष्क का भार लगभग 1300 - 1400 ग्राम होता है जबकि नवजात शिशु मे इसका भार 370 - 400 तक होता है। मनुष्य मे इसका आयतन 1200 -1500 cc होता है यह चारो ओर से तीसरी झिल्ली से घिरा होता है
बाहरी झिल्ली के दृढ़तानिका ( Duramater ) मध्य झिल्ली के जाल तानिका ( Arachnoid) तथा भीतरी झिल्ली को मृदुतानिका मे रुधिर
कोशिकाओ का एक सघन जाल होता है , इन्ही के द्वारा मस्तिष्क को
भोजन तथा O2 मिलती है। मृदुतानिका एवं जालतानिका के मध्य की गुहा ( Ventricle ) मे एक रंगहीन , स्वच्छ तरल पदार्थ
प्रमस्तिष्क की बाह्म आघातो से सुरक्षा करता है। मस्तिष्क के तीन प्रमुख भाग होते है।
(a) : अग्रमस्तिष्क ( Forebrain )
( इनके अनेक भाग होते है )
(१) : घ्रण मस्तिष्क ( Olfactory Brain ) = मनुष्य मे ये कम विकसित होते है। प्रमस्तिष्क के दोनों ललाट पिंण्डो के निचले
भाग पर एक - एक , अंण्डाकार व छोटा घ्रण पिण्ड (Olfactorylobe ) स्थित होता है। यह गन्ध ( Smell ) के ज्ञान
का केन्द्र होता है।
(२) : प्रमस्तिष्क ( Cerebrun ) = यह अग्रमस्तिष्क का सबसे बड़ा (80%) व विकसित भाग है प्रमस्तिष्क पर पाई जाने वाली दरारे इसकी सहत धरातल मे वृद्धि करती है।
इसका बाह्म भाग धुसार पदार्थ ( Grey matter ) से बना होता है।
एक गहरा अनुलम्ब विदर प्रमस्तिष्क को दाये - बाएं प्रमस्तिष्क गोलार्धों
तन्त्रिका तन्तुओ की एक पट्टी से जुड़े रहते है , जो कापर्स कैलोसम
( Corpus callosum ) कहलाता है। इसमें आगे बड़ा अग्र ललाट
पिण्ड ( Frontal lobe ) तथा पीछे छोटा शंख पिण्ड ( Temporal lobe ) होता है। शंख पिण्ड को एक विदर पुनः दो भागो मे बाहर की ओर उभरी हुई पैराइल पिण्ड ( Parital lobe ) तथा भीतरी की ओर
आक्सीपिटल पिण्ड ( Occipital lobe ) मे विभक्त कर देता है। यह स्मृति , सोचने , विचारने , चेतने , तर्क शक्ति , सिखने , आदि का केंन्द्र होता है।
(३) : डाइएनसिफैलान ( Diencephalon) = अग्रमस्तिष्क के
पिछले भाग के डाइएनसिफैलान कहते है। यह प्रमस्तिष्क के ठीक निचे स्थित होता है। इसके निम्न तीन भाग होते है।
(४) : एपिथैलेमस ( Epithalamus ) = यह भाग पीनियल ग्रन्थि से सम्बन्ध होता है तथा अपने ऊपर उपस्थित मृदुतानिका के साथ मिलकर अग्र कोराइड जालक ( Anteriorchoroid Plexus ) बनता है।
(५) : थैलेमस ( Thalamus ) = दर्द, ठण्ड, व गर्मी के अनुभव का कार्य करता है।
(६) : हाइपोथैलेमस ( Hypothalamus ) = यह भूख, प्यास, स्नेह घृणा, उत्साह का भी नियंत्रण करता है। अतः डाइएनसिफैलान ताप नियमत, उपापचय, जनन, दृक पिण्ड, दृष्टि, ज्ञान, आदि का नियन्त्रण एवं नियमन करता है।
(b) : माध्य्मस्तिष्क ( Midbrain )
मस्तिष्क का मध्य भाग अपेक्षाकृत छोटा होता है यह भाग मस्तिष्क को मेरुरज्जु से जोड़ता है। इसका अधिकांश भाग प्रमस्तिष्क गोलार्द्धो द्वारा ढका रहता है। इसके अन्तर्गत कार्पोरा क्वाड्रीजेमाइना (Corpora quadrigemina ) क्रूरा सेरेब्राई (Crura Cerebri) पट्टीकाए आता है, जो पश्च मस्तिष्क को अग्र मस्तिष्क से जोड़ती है। इस भाग मे दृश्य तन्त्रिकाए एक - दूसरे को क्रास करती है
तथा ऑप्टिक किएज्मा बनती है। यह देखने तथा सुनने मे सहायक होती है।
(c) : पश्च मस्तिष्क ( Hindbrain )
(१) : पोन्स ( Pons ) = ये 2.5 सेमी लम्बे गोल उभार के मस्तिष्क के निचले तल पर स्थित होता है। यह श्वसन नियमन मे सहायक है।
(२) : अनुमस्तिष्क ( Cerebellum ) = यह शरीर का सन्तुलन बनाये रखता है। यह पेशियो को नियंन्त्रित करके प्रचलन, खेलने, कूदने, नाचने आदि को नियन्त्रित करता है।
(३) : मस्तिष्क पुच्छ ( Medulla Oblogata ) = यह मस्तिष्क का पश्च बेलनाकार भाग है, जो कपाल के महारन्ध्र ( Foramen magnum ) से निकलकर मेरुरज्जू मे स्थानान्तरिक हो जाता है।
यह शरीर की अनैच्छिक ( Involuntary ) क्रियाओ
जैसे : श्वास की लय, ह्रदय स्पन्दन, परिसंचरण, छिकना, ख़ासना, हिचकी, वमन जीभ की गतियों, आदि का नियन्त्रण एवं नियमन करता है।
मानव मस्तिष्क के कार्य ( Functions of Human Brain )
(a) : मस्तिष्क शारीरिक गतिविधियों मे समन्वय करता है जिसके अंगतन्त्र की कार्य प्रणाली और हार्मोनल प्रतिक्रियाए एक साथ कार्य करती है।
(b) : यह शरीर के सभी संवेदी अंगों से तन्त्रिका आवेगो के द्वारा सूचनाएं प्राप्त करता है।
(c) : यह सूचनाओं को संग्रहित करता है, जिससे मानव व्यवहार को
पिछले अनुभव के अनुसार संशोधित किया जा सके।
(d) : यह विभिन्न संवेदी अंगों से प्राप्त विभिन्न के उद्दीपनो को परस्पर सम्बन्ध करता है और उचित प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है।
(e) : यह संवेदी अंगों द्वारा मासपेसिया और ग्रन्थियो को अपना निर्देश भेजकर आवेगो के प्रति प्रतिक्रिया दर्शाता है, जिसके अनुसार अंग कार्य करते है।
मेरुरज्जू या सुषुम्ना ( Spinal cord )
मस्तिष्क पुच्छ कपालीय गुहा के बाहर एक लम्बी, खोखली व बेलनाकार रचना के रूप मे मानव की देह गुहा मे रूपान्तरिक होता है, इन रचना को मेरुरज्जू कहते है। इसकी केन्द्रीय अक्ष मे प्रमस्तिष्क मेरुद्रव्य (Cerebrospinal fluid ) से भरी संकरी गुहा, न्यूरोसील (Neurocoel ) होता है। मेरुरज्जू भी मस्तिष्क के समान ही तीन झिल्लीयो से ढकी रहती है। इन झिल्लीयो के बीच मे एक तरल पदार्थ धुसर द्रव्य भरा रहता है, जो 'H' की आकृति का होता है। मेरुरज्जू मे धुसर एवं श्वेत द्रव्य की स्थिति मस्तिष्क के एकदम विपरीत होता है अर्थात धुसर द्रव्य केंन्द्र मे तथा श्वेत द्रव्य बाहर की ओर स्थित होता है। धुसर द्रव्य के पंख सदृश उभाग पृष्ठ व प्रतिपृष्ठ दोनों ओर क्रमशः पृष्ठीय व अधर (Dorsal and Ventral horn ) कहलाता है। वक्षीय (Thoracic ) व लूम्बर ( Lumber) क्षेत्रो में पार्श्वीय श्रृंग ( Lateral horns) भी पाए जाते है। मेरुरज्जू का पृष्ठ शल्क केंद्रीय नाल से पृष्ठ पट (Dorsal Septum) द्वारा जुड़ा रहता है मेरुरज्जू प्रतिवर्ती क्रियाओ का केंन्द्र है तथा यह मस्तिष्क व मेरु तन्त्रिकाओं के बीच सेतु का कार्य करता है।
मेरुरज्जू के कार्य ( Function of Spinal cord )
मेरुरज्जू के अनेक कार्य निंम्लिखित
(a) : यह प्रतिवर्ती क्रियाओ का संचालन एवं नियमन करता है अतः मेरुरज्जू के क्षतिग्रस्त होने पर मनुष्य में प्रतिवर्ती क्रियाए नहीं हो पाती है
(b) : यह अनैच्छिक क्रियाओ को सन्तुलित करता है।
(c) : यह मस्तिष्क को जाने तथा मस्तिष्क से आने वाले आवेगो के लिए मार्ग प्रदान करता है।
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र ( Peripheral Nervous system )
केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र को शरीर के विभिन्न संवेदी भागो से जोड़ने वाली धागेनुया तन्त्रिकाए परिधीय तन्त्रिका तन्त्र बनती है प्रत्येक तन्त्रिका अनेक तन्त्रिका तन्तुओ का गुच्छा होता है। अधिकांश तन्त्रिका तन्तु ऐच्छिक ( Voluntary ) प्रतिक्रियाओ से सम्बन्धित होते है। ये तन्त्रिकए दो प्रकार अर्थात् मस्तिष्क से सम्बन्धित कपालीय तन्त्रिकाए ( Cranial nervous ) तथा मेरुरज्जू से सम्बन्धित मेरु तन्त्रिकाए ( Spinal nervous ) होता है। मानव मे कपालीय तन्त्रिकाए 12 जोड़ी तथा सुषुम्नीय तन्त्रिकाए 31 जोड़ी होती है। इसमे से कुछ तन्त्रिकाए संवेदी कुछ चालक तथा कुछ मिश्रित स्वभाव की होती है।
स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र ( Autonomic Nervous system )
यह वास्तव मे परिधीय तन्त्रिका तन्त्र का ही भाग होता है,जो अन्तरागों ( Viceral organs) की क्रियाओ का नियन्त्रण व नियमन करता है, परन्तु परिधीय तन्त्रिकाओं के विपरीत यह भाग तुलनात्मक रूप से स्वतंन्त्र होता है इसमें अन्तरागो का दोहरा
परस्पर विरोधात्मक ( Antagonistic ) नियन्त्रण होता है इसके मुख्य दो घटक होते है जो निम्नलिखित है
(a) : अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र ( Sympathetic Nervous system )
(b) : प्ररानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र ( Parasympathetic Nervous system )
3 Comments
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ReplyDeleteAll Readers Thank U so much
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